आपकी जानकारी के लिए बता दे की 8 जून, 1948 का दिन। देश की पहली एयरलाइन एयर इंडिया (उस वक्त टाटा एयरलाइंस) और देश की एविएशन इंडस्ट्री के लिए बेहद खास दिन। एयर इंडिया ने इस दिन अपनी पहली अंतरराष्ट्रीय उड़ान भरी, लंदन के लिए। विमान में कुल 35 यात्री सवार थे। जाहिर तौर पर इनमें ज्यादातर नवाब और महाराजा थे।
एयरपोर्ट पर पत्रकारों और फोटोग्राफर का जमघट था। जो इस ऐतिहासिक लम्हें को अपने कलम और कैमरे में कैद करने को उत्सुक थे। विमान रात के अंधेरे में उड़ान भरने वाला था। लेकिन, कैमरे के फ्लैश पूरे एयरपोर्ट के किसी कोने में हल्के से भी अंधेरे का भान नहीं होने दे रहे थे।
किसने उड़ाई थी फ्लाइट
तमाम राजा-महाराजा को लंदन लेकर जा रहे विमान का नाम था, मालाबार प्रिंसेस। उड़ान की जिम्मेदारी थी कैप्टन केआर गुजदार पर। उन्हें पहली बार विमान को 5000 मील ले जाना था। रुकने के दो ठिकाने थे, काहिरा (मिस्र) और जिनेवा (स्विटरलैंड)। 35 यात्रियों में 29 लंदन जा रहे थे। वहीं, 6 की मंजिल जिनेवा थी।
कैसे हुई थी यात्रा की तैयारी?
एयर इंडिया को उड़ान शुरू किए करीब दो दशक बीत चुके थे। लेकिन, उसके पास सिर्फ घरेलू उड़ानों का तजुर्बा था। लिहाजा, एयरलाइन ने अंतरराष्ट्रीय उड़ान के लिए दो महीने पहले से तैयारी शुरू कर दी। पायलट, स्टाफ से लेकर यात्रियों तक को बाकायदा ट्रेनिंग दी गई। एयरइंडिया ने उड़ान से पहले काहिरा, लंदन और जिनेवा में अपना ऑफिस भी खोला।
एयर इंडिया ने कैसे भरी उड़ान?
वह जून की गर्मी थी। आसमान पूरी तरह साफ था। चांद उस ऐतिहासिक उड़ान का गवाह नहीं बन पाया, क्योंकि उस दिन वह आसमान से गायब था। अलबत्ता टिमटिमाते तारों ने कैप्टन गुजदार और बाकी क्रू मेंबर की हौसलाअफजाई की। एक ऐतिहासिक उड़ान के सभी स्थितियां आदर्श थीं। कैप्टन गुजदार ने एयरक्राफ्ट का निरीक्षण किया और उन्होंने उड़ान के लिए रजामंदी दी।
रात ठीक 11.15 बजे विमान टेकऑफ के लिए तैयार था। कैप्टन गुजदार ने कंट्रोल रूम से अनुमति ली। फिर उन्होंने सौम्य लफ्जों में एलान किया, ‘एयर इंडिया मालाबार प्रिंसेस, अब टेकऑफ के लिए तैयार है।’ फिर विमान का इंजन गुर्राया। उसने रनवे पर सरपट दौड़ लगाई और चंद पलों बाद हवा से बात करने लगा।
टिकट और खाने-पीने की व्यवस्था
एयर इंडिया ने टिकट का दाम 1720 रुपये रखा। विमान में खाने-पीने का भी पूरा बंदोबस्त था और उन्हें काफी सावधानी से तय भी किया गया था। एयरहोस्टेस की ड्रेस की बात करें, तो उनका कोट नीला और स्कर्ट आसमानी रंग का था। एयरहोस्टेस की यह ड्रेस 1960 तक रही। फिर इसे परंपरागत साड़ी से रिप्लेस कर दिया गया। एयरहोस्टेस को भी महीनों तक ट्रेनिंग दी गई थी, ताकि वे हरेक यात्री को अहसास करा सकें कि वह एयरलाइन का खास मेहमान है।
जेआरडी टाटा और गणमान्य यात्री
सांताक्रूज एयरपोर्ट के छोटे से टर्मिनल भवन लोगों का जमघट था। यात्रियों और उनके परिवार वालों के अलावा भी बहुत से लोग ऐसे थे, जिनका मकसद सिर्फ इस ऐतिहासिक मौके का गवाह बनना था। यात्रियों में एयर इंडिया के तत्कालीन चेयरमैन जेआरडी टाटा भी थे।
बाकी यात्रियों की बात करें, तो प्रमुख नाम महाराजा दलीप सिंह का था। वह इंग्लैंड और ऑस्ट्रेलिया का टेस्ट मैच देखने लंदन जा रहे थे। विमान में कई नवाबों और महाराजाओं के अलावा कुछ बड़े अफसर, अंग्रेज और बिजनेसमैन भी थे। दो साइकिस्ट भी थे, जो बेंबले लंदन में होने वाले ओलंपिक में शिरकत करने जा रहे थे।
भारत के लिए बड़ी उपलब्धि
वह 1948 का साल था और उस वक्त काफी कम देशों की एयरलाइंस अंतरराष्ट्रीय उड़ान भर रही थीं। ऐसे में भारत जैसे देश के लिए यह काफी बड़ी उपलब्धि थी, जो चंद महीने पहले आजाद हुआ था। 8 जून को उड़ान भरने वाला मालाबार प्रिंसेस 10 जून को सुबह तड़के ही लंदन पहुंचा। विमान यात्रा के दौरान 24 घंटे हवा में रहा। लंदन में विमान यात्रियों की आगवानी खुद तत्कालीन भारतीय उच्चायुक्त कृष्णा मेनन ने की। लंदन में भारत की इस पहली अंतरराष्ट्रीय हवाई यात्रा की कामयाबी का जश्न एक बड़ी पार्टी देने के साथ मनाया गया।