जम्मू और कश्मीर संभाग के बीच सत्ता संतुलन के लिए परिसीमन में बनाई गई नई सीट अनंतनाग-राजोरी पर चुनाव करीब आने के साथ ही मुकाबला रोचक होता जा रहा है। इस सीट से संसद की दहलीज तक पहुंचाने में सत्ता की चाबी राजोरी और पुंछ के मतदाताओं के हाथ में होगी। यह इलाका पहाड़ी, गुज्जर तथा हिंदू मतदाताओं का है। यहां की सात विधानसभाएं इस सीट में हैं। यहां पहाड़ी और गुज्जर कार्ड का खेल शुरू हो गया है। भाजपा के मैदान में न होने से उसके वोटर असमंजस की स्थिति में हैं। हालांकि सभी की नजरें भाजपा के रुख पर टिकीं हैं। राजोरी-पुंछ में पहाड़ी तथा गुज्जर लोगों की आबादी अधिक है।
यह दोनों समुदाय लंबे समय से वर्चस्व की लड़ाई लड़ रहे हैं। पिछले दिनों केंद्र सरकार ने पहाड़ी समुदाय को एसटी का दर्जा दिया तब दोनों समुदायों के बीच मनमुटाव की स्थिति रही। हालांकि, गुज्जरों के आरक्षण प्रतिशत में किसी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई।
इस वजह से पहाड़ी समुदाय को स्वाभाविक रूप से भाजपा के करीब माना जाने लगा। सरकारी आंकड़ों के अनुसार 2018 में पूर्वववर्ती जम्मू-कश्मीर में कराए गए सर्वे में पहाड़ी भाषी लोगों की आबादी 10 लाख (8.16 प्रतिशत) बताई गई।
नेकां तथा पीडीपी का हर जगह कैडर है। नेकां प्रत्याशी मियां अल्ताफ की गुज्जर समुदाय में अच्छी पैठ बताई जाती है। अपनी पार्टी के प्रत्याशी जफर इकबाल मन्हास पहाड़ी समुदाय के बताए जाते हैं, इसलिए अब यहां पहाड़ी और गुज्जर का कार्ड खेला जाने लगा है। भाजपा का उम्मीदवार न होने से राजोरी-पुंछ के मतदाता असमंजस में हैं।