खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि-बीज शोध एवं विकास को बढ़ावा दिये जाने की जरूरत

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Food security, नयी दिल्ली 28 मार्च (वार्ता) : शक्तिशाली राष्ट्र के लिए कृषि क्षेत्र में एक मजबूत बीज प्रणाली का होना बहुत जरूरी है। भारत में लगभग 1.4 अरब की आबादी को भोजन देने के लिए खाद्य एवं पोषण की सुरक्षा पर ध्यान दिए जाने की जरूरत लगातार बनी हुई है। हमारी फसलों और जैविक संसाधनों पर अनेक जैविक और अजैविक दबाव जलवायु परिवर्तन जैसे अनेक कारणों से बुरी तरह प्रभावित हुए हैं।
दक्षिण एशिया में खाद्य सुरक्षा की स्थिति पूरे क्षेत्र की स्थिरता के लिए जोखिम उत्पन्न कर रही है। हाल ही में श्रीलंका, बंगलादेश में खड़ा हुआ नया संकट और पाकिस्तान में चल रहा संकट इस क्षेत्र में खाद्य सुरक्षा को मजबूत करने के लिए शोध एवं विकास में निवेश बढ़ाने की जरूरत के ठोस उदाहरण हैं।

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विभिन्न संगठन राष्ट्रीय सुरक्षा की दृष्टि से संभावित खतरों पर ध्यान आकर्षित करते आए हैं, और सहयोगपूर्ण प्रणालियों द्वारा इन्हें हल करना चाहते हैं। फिर भी, इससे खाद्य और कृषि में राष्ट्रीय और वैज्ञानिक संप्रभुता की धारणा, खासकर बीजों और रोपण की सामग्री पर सवाल खड़ा होता है, जो वर्तमान में आत्मनिर्भर भारत के सिद्धांत का केंद्रीय ढांचा है। इसके अलावा, मजबूत बनने पर ध्यान केंद्रित करने और आत्म-निर्भर बनने पर प्रधानमंत्री, नरेंद्र मोदी के केंद्रण के साथ भारत में हितधारक ऐसे समाधानों के विकास की मांग कर रहे हैं, जो इन जोखिमों को कम कर देश में बीज निर्माण के अवसर बढ़ाएं, और भारत की कृषि मूल्य श्रृंखला मजबूत बन सके।
पॉलिसी एडवोकेसी रिसर्च सेंटर (पीएआरसी) द्वारा इस संदर्भ में अनेक संलग्नताओं के बाद यह निष्कर्ष निकला कि उच्च गुणवत्ता के बीजों का निर्माण करने पर केंद्रित शोध और विकास के साथ काम को आगे बढ़ाए जाने की जरूरत है। सरकारी शोध संस्थानों द्वारा कुछ फसलों के सुधार के लिए अनुसंधान किया गया है, लेकिन बीज की शोध में निजी क्षेत्र का महत्व पिछले दो दशकों में कई गुना बढ़ चुका है। इसलिए इस क्षेत्र में निजी क्षेत्र के निवेश को प्रोत्साहित किए जाने की जरूरत पहले से काफी ज्यादा हो चुकी है। विश्व में निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों द्वारा शोध एवं विकास (आरएंडडी) पर होने वाला औसत खर्च उनके राजस्व का 10 से 12 प्रतिशत होता है, जबकि भारत में यह लगभग 3 प्रतिशत है। विश्व की महाशक्ति बनने की भारत की महत्वाकांक्षा, और कृषि के वैश्विक अर्थव्यवस्था का एक मूलभूत तत्व होने के कारण भारतीय निजी बीज क्षेत्र पर बल देकर आरएंडडी को प्रोत्साहन देने से अनेक सामाजिक-आर्थिक प्रभाव उत्पन्न हो सकते हैं, और खाद्य श्रृंखला में विकसित होते हुए खतरों को कम किया जा सकता है।

निजी क्षेत्र में बीजों पर आरएंडडी के सहयोग के लिए दी जाने वाली रियायतें राष्ट्र पर वित्तीय बोझ के कारण व्यवहारिक नहीं हैं। इसके अलावा, विभिन्न कारणों से खाने-पीने की चीजों की बढ़ती महंगाई को नियंत्रण में रखने के लिए सरकारी खजाने पर दबाव बढ़ा है, और ऊपर बताए गए कारणों से उत्पादकता एवं योजना अक्सर जोखिम में आ जाते हैं। कम पैदावार और बीमारी, कीटों या जलवायु परिवर्तन के कारण खराब होती फसलें उन चुनौतियों का संकेत दे रही हैं, जिन्हें युद्धस्तर पर हल किए जाने की जरूरत है। पीएआरसी द्वारा की गई प्राथमिक शोध में सामने आया है कि बीज कंपनियों द्वारा आरएंडडी पर किए जाने वाले खर्च के लिए मिलने वाली टैक्स छूट बढ़ाने से उद्यमों को इसमें ज्यादा संसाधन लगाने का प्रोत्साहन मिलेगा। साथ ही, घरेलू और क्षेत्र-विशिष्ट बीज फसलों की आरएंडडी गतिविधियाँ चलाने पर केंद्रित एमएसएमई उद्यमों के साथ काम करते हुए ज्यादातर उत्तरदाताओं का विचार था कि उनकी वृद्धि और उत्तरजीविता केवल ज्यादा आरएंडडी द्वारा हासिल किए जाने वाले विभेदीकरण पर निर्भर थी। 2016 से 2020 के बीच बीजों (बायोटेक्नॉलॉजी) के लिए आरएंडडी पर दी जाने वाली टैक्स छूट को 200 प्रतिशत से घटाकर 150 प्रतिशत कर दिया गया, जो आज 100 प्रतिशत है। बीज में की जाने वाली शोध में भारी जोखिम होता है, और जरूरी नहीं होता कि हर बार अपेक्षित परिणाम मिलें, लेकिन फिर भी इसे हतोत्साहित नहीं किया जाना चाहिए। इसके अलावा यह लंबी चलने वाली एक कठिन प्रक्रिया है, जिसमें आम तौर से 7 साल का समय लगता है, और इस अवधि में भारत में मौजूद विभिन्न कृषि-जलवायु क्षेत्रों में परीक्षण के प्रोटोकॉल तैयार करने पड़ते हैं।
आरएंडडी में निवेश को प्रोत्साहित किए जाने पर बल दिए जाने की जरूरत और मौजूदा परिस्थिति, जिसमें शोध पर रियायत देना वित्तीय रूप से व्यवहारिक नहीं है, इन दोनों संदर्भों में पीएआरसी के अध्ययन में सुझाव दिया गया कि बीज कंपनियों द्वारा शोध एवं विकास में किए जाने वाले खर्च पर 200 प्रतिशत टैक्स छूट की बहाली से शोध एवं विकास में उनके निवेश को बढ़ाने के लिए आवश्यक पूंजी जुटाने में मदद मिलेगी।
भारतीय बीज क्षेत्र अपने वैश्विक और क्षेत्रीय समकक्षों, जिन्हें टेक्नॉलॉजी ट्रांसफर के साथ आरएंडडी में संस्थागत विदेशी निवेश मिलता है, के साथ समता बनाए रख सके, यह सुनिश्चित करने के लिए भारत में निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों को आरएंडडी में किए जाने वाले खर्च पर 200 प्रतिशत टैक्स छूट की बहाली इस क्षेत्र में निवेश बढ़ाने का प्रोत्साहन देगी। फेडरेशन ऑफ सीड इंडस्ट्री ऑफ इंडिया (एफएसआईआई) के अनुसार भारतीय बीज उद्योग व्यापार का आकार लगभग 22,000 करोड़ रुपये का है और यह साल-दर-साल बढ़ रहा है, लेकिन वैश्विक बीज व्यापार में इसका हिस्सा केवल 5 प्रतिशत है। बीज उत्पादन में भारतीय सार्वजनिक बीज क्षेत्र का हिस्सा 2017-18 में 42.72 प्रतिशत से गिरकर 2020-21 में 35.54 प्रतिशत होने के साथ इसी अवधि में निजी बीज क्षेत्र का हिस्सा 57.28 प्रतिशत से बढ़कर 64.46 प्रतिशत हो गया।
वित्तवर्ष 2023-24 के लिए फरवरी और मार्च 2023 के दौरान भारत में विभिन्न राज्यों के कृषि बजट से पहले हुए मंथन के दौरान बीजों का विकास करने की जरूरत पर दिए गए विभिन्न विचारों के साथ किसान संगठनों और अन्य हितधारकों ने बेहतर गुणवत्ता के बीजों को अपना समर्थन दिया, जो पैदावार बढ़ाकर जलवायु परिवर्तन एवं अन्य समस्याओं का सामना कर सकें। इसके अलावा, अफसरशाही, राजनैतिक प्रतिष्ठानों, और कृषि की मूल्य श्रृंखला, नीति निर्माताओं, एवं आमजनों के बीच इस विषय में अनेक बहस और वार्ताएं छिड़ रही हैं।

पीएआरसी के कार्यकारी निदेशक विक्रम शंकरनारायणन के अनुसार, ‘‘हमारे अध्ययन में सामने आया है कि हम जब तक शोध एवं विकास को मजबूत वित्तीय प्रोत्साहन नहीं देंगे, तब तक भारत की निजी बीज कंपनियाँ पिछड़ती जाएंगी, जिनमें से कुछ विश्व में मजबूत स्थिति में संचालन करती हैं। यदि इन्हें बीज की बेहतर किस्मों का विकास करने के लिए शोध में किए गए निवेश पर प्रोत्साहन मिलेगा, तो वो इसमें और ज्यादा संसाधन लगाएंगी। इसके अलावा पीएआरसी अध्ययन की मुख्य अर्थशास्त्री, बनिशा बेगम शेख ने कहा कि आरएंडडी के लिए वित्तीय प्रोत्साहन से निजी क्षेत्र की बीज कंपनियों को अपनी प्रयोगशालाओं का आधुनिककीकरण कर उन्हें अपने विकसित आर्थिक समकक्षों के समान बनाने में मदद मिलेगी।’’
आत्मनिर्भरता और दृढ़ता के निर्माण तथा खाद्य एवं पोषण की सुरक्षा सुनिश्चित कर प्रतिस्पर्धी बनने की भारत की महत्वाकांक्षा को देखते हुए 200 प्रतिशत टैक्स बहाली द्वारा आरएंडडी पर वित्तीय प्रोत्साहन एक किफायती और प्रगतिशील उपाय होगा। इसके साथ एक मजबूत रैगुलेटरी प्रणाली भी जरूरी है, जो पारदर्शी और लेखापरीक्षण योग्य तरीके से छूट प्राप्त करने की प्रक्रियाओं को नियंत्रित करे। राष्ट्रीय महत्व की फसलों, जैसे तिलहन और दालों के लिए सार्वजनिक एवं निजी शोध संगठनों के बीच बड़े स्तर की पीपीपी परियोजनाओं के वित्तपोषण पर ध्यान दिया जाना भी जरूरी है, जिसमें ऐतिहासिक रूप से निवेश बहुत काफी कम रहा है। बीज की शोध में निजी निवेश को प्रोत्साहन देने के द्विआयामी दृष्टिकोण से इस दशक में देश को आगे बढ़ाने में मदद मिलेगी।

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