देश भर में रेलवे बोर्ड ने माइग्रेंट वर्कर्स और लेबर क्लास वाले ग्रुप्स की जरूरतों को पूरा करने के लिए नॉन-एसी जनरल कैटेगिरी की ट्रेनें शुरू करने की योजना तैयार कर रही है. इसका निर्णय इसलिए लिया गया क्योंकि बड़ी संख्या में लो इनकम ग्रुप वाले पैसेंजर्स को लंबी वेटिंग का सामना करना पड़ता है. इस तरह की स्पेशल ट्रेनें सिर्फ त्योहारों या पीक सीजन के दौरान ही शुरू की जाती थीं.
पिछले कुछ समय से रेलवे ने अपनी योजनाओं में काफी बदलाव किए हैं, और जनवरी 2024 से इसका एक और नया प्रस्ताव लागू होने जा रहा है। जैसा कि पहले रेलवे ट्रेनें विशेष अवसरों या श्रृंगार ऋतु के दौरान ही चलाता था, वैसे ही नई योजना के तहत रेलवे ने अब साल भर नॉन-एसी एलएचबी कोच के साथ प्रतिदिन 114 डेली फ्लाइट्स और 15 विमानों के साथ परिचालन फिर से शुरू करने का निर्णय लिया है। इस बदलाव के तहत इन ट्रेनों में केवल स्लीपर और जनरल कैटेगिरी की सर्विस होगी।
इन राज्यों में चलेगी स्पेशल ट्रेन
रेलवे बोर्ड के मुताबिक, राज्यों के लिए नई स्पेशल ट्रेनों की योजना बनाई जा रही है। इस योजना के तहत उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखंड, छत्तीसगढ़, उड़ीसा, पश्चिम बंगाल, पंजाब, असम, गुजरात, दिल्ली, तमिलनाडु, महाराष्ट्र, और आंध्र प्रदेश राज्यों के लोगों के लिए नई ट्रेनें चलाई जाएंगी। इन राज्यों से अधिकांश कुशल-अकुशल कामगार, कारीगर, मजदूर और अन्य लोग महानगरों और बड़े शहरों में रोजगार के लिए जाते हैं। इन ट्रेनों में सिर्फ स्लीपर-जनरल क्लास के कोच लगेंगे। यात्रियों को सुविधाजनक यात्रा का मौका मिलने से उन्हें बड़ी राहत मिलेगी। एक अधिकारी ने बताया कि माइग्रेंट स्पेशल ट्रेनों में न्यूनतम 22 से अधिकतम 26 कोच होंगे, और इन्हें सीजनल के बजाय पूरे साल परमानेंटली चलाया जाएगा।
ये भी योजना में है शामिल
भारतीय रेलवे ने योजना बनाई है कि इन नई ट्रेनों को रेगुलर टाइम टेबल में शामिल किया जाएगा। इससे पैसेंजर्स को पहले से ही रिजर्वेशन करने का फायदा होगा। भविष्य के लिए भारतीय रेलवे ने तैयारी करने के लिए केवल दो प्रकार के कोच रखने का निर्णय लिया है – एलएचबी कोच और वंदे भारत कोच सर्विस। मौजूदा समय में रेलवे में 28 प्रकार के कोच सर्विस होते हैं, लेकिन इस योजना के तहत इन्हें कम कर दिया जाएगा। एक अधिकारी ने बताया कि इससे मरम्मत की लागत कम होगी और यात्रा भी सस्ती होगी।
ये भी पढें: गो फर्स्ट एयरलाइन फिर से मुसीबतें बढ़ी, करनी पड़ी कटौती