प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में होने वाली कैबिनेट बैठक में गन्ने की एफआरपी (Fair Remunerative Price) यानी उचित और लाभकारी मूल्य को बढ़ाने का महत्वपूर्ण फैसला हो सकता है। इसमें एफआरपी को 10 रुपये प्रति क्विंटल की दर से बढ़ाने की मंजूरी दी जा सकती है। कृषि लागत और मूल्य आयोग (सीएसीपी) ने पहले ही सरकार को इस सिफारिश की है। आयोग के मुताबिक, गन्ने की उचित और लाभकारी मूल्य को गन्ना सीजन 2023-24 के लिए 10.25 प्रतिशत चीनी रिकवरी दर के लिए 315 रुपये प्रति क्विंटल होना चाहिए, जो वर्तमान में 305 रुपये है। यदि चीनी रिकवरी इससे कम या अधिक होती है, तो एफआरपी में कमी या बढ़ोतरी होगी।
बढ़ी हुई एफआरपी नई गन्ना सत्र से लागू होगी
इस बढ़ी हुई एफआरपी नई गन्ना सत्र से लागू होगी, जो अक्टूबर 2023 से 30 सितंबर 2024 तक रहेगा। साल 2021 में एफआरपी में केवल 5 रुपये की वृद्धि करके इसे 290 रुपये किया गया था। फिर, 2022 में इसमें 15 रुपये की वृद्धि की गई। अनुसारों के मुताबिक, इस साल सरकार 10 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि करेगी। यदि हम 2013-14 के चीनी सीजन की बात करें, तो उस समय गन्ने का एफआरपी केवल 210 रुपये प्रति क्विंटल था। हालांकि, इसे अब 9.5 प्रतिशत चीनी रिकवरी पर आधारित नहीं है, बल्कि इसे दाम बढ़ाने के साथ 10.25 प्रतिशत कर दिया गया है।
इसके साथ ही, चीनी उत्पादकों का संघ पहले ही सरकार से चीनी के न्यूनतम दाम को बढ़ाने की मांग कर चुका है। वर्तमान में यह दाम 31 रुपये प्रति किलो है।
2024 के आम चुनाव को देखते हुए गन्ना किसान अहम
एफआरपी एक न्यूनतम मूल्य होता है, जिस पर चीनी मिलों को किसानों से गन्ना खरीदना पड़ता है। सरकार गन्ना (नियंत्रण) आदेश, 1966 के तहत एफआरपी को निर्धारित करती है। साल 2024 के आम चुनाव को देखते हुए गन्ना किसान अहम हैं और इसलिए सरकार टाइमली एफआरपी को बढ़ाकर किसानों का समर्थन प्राप्त करने की कोशिश करेगी।
हालांकि, इस बात का ध्यान देना महत्वपूर्ण है कि एफआरपी में वृद्धि करने का फायदा देश के सभी गन्ना किसानों को नहीं मिलेगा। कुछ राज्यों में पहले से ही एफआरपी से अधिक दाम मिलते हैं, क्योंकि वहां स्टेट एडवायजरी प्राइस (एसएपी) लागू होता है। इन राज्यों में उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा शामिल हैं। पंजाब में वर्तमान में गन्ने का दाम 380 रुपये प्रति क्विंटल है, हरियाणा में 372 और उत्तर प्रदेश में 350 रुपये प्रति क्विंटल का भाव है। एसएपी के तहत, ये राज्य अपनी अलग-अलग कीमतें निर्धारित करते हैं, जो आमतौर पर एफआरपी वृद्धि के मुकाबले पहले से ज्यादा होती हैं।
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